Sattuz Success Story :जब भी बिहार की बात होती है, सत्तू का जिक्र ना हो, तो समझिए कुछ अधूरा है। सत्तू एक सुपरफूड है, जिसे प्रोटीन का बेहतरीन स्रोत माना जाता है। सचिन कुमार, जिन्होंने एक कॉर्पोरेट नौकरी छोड़कर सत्तू को एक नए रूप में प्रस्तुत करने का फैसला किया, इस बात के जीते-जागते उदाहरण हैं।
कॉर्पोरेट से सत्तू तक का सफ
सचिन कुमार मुंबई में बिजनेस डेवलपमेंट मैनेजर के रूप में काम करते थे। अच्छी नौकरी के बावजूद, उन्हें अपने अंदर एक अधूरापन महसूस होता था। 2009 में, उन्होंने नौकरी छोड़ने का साहसिक निर्णय लिया और बिहार में खुद का बिजनेस शुरू किया। उनका फोकस पारंपरिक खाने-पीने की चीजों पर था, खासकर सत्तू पर, जो चने या भुने हुए जौ से बनता है।
लोगों ने सोचा कि सचिन ने नौकरी छोड़कर गलत फैसला लिया है, लेकिन उन्होंने अपनी मेहनत से सबको गलत साबित कर दिया। फाइनेंशियल ईयर 2023 में उनके सत्तू के स्टार्टअप ने 1.2 करोड़ रुपये का रेवेन्यू कमाया, जिसने सभी को चौंका दिया।
सत्तू के साथ आगे की योजना
सचिन की कामयाबी सिर्फ सत्तू तक सीमित नहीं है। वे रेडी-टू-ईट लिट्टी और सत्तू परांठा बनाने की योजना भी बना रहे हैं। इससे उनका स्टार्टअप बिहार के बाहर रह रहे लोगों को अपनी जड़ों से जोड़ने का काम करेगा। उनकी कंपनी की वेबसाइट पर सत्तू को बेहतरीन प्रोटीन के रूप में ब्रांड किया गया है। फ्लेवर्ड सत्तू की एक पैकेज की कीमत 800 रुपये है, जिसमें 30 सैशे होते हैं।
सचिन कुमार का सफर: एक फ्लैशबैक
सचिन कुमार ने 2008 में सेल्स और मार्केटिंग में MBA किया और फिर एक अच्छी नौकरी हासिल की। लेकिन उनका मन हमेशा अपना खुद का काम शुरू करने का था। 2009 में, पारंपरिक फूड प्रोडक्ट्स की मार्केटिंग पर एक वर्कशॉप के बाद, उन्होंने नौकरी छोड़कर मधुबनी लौटने का निर्णय लिया।
सत्तू के फ्लेवर्स और मार्केटिंग स्ट्रेटेजी
सचिन ने 2018 में तीन फ्लेवर में सत्तू लॉन्च किया – मीठा, जलजीरा, और चॉकलेट। उन्होंने सत्तू की पैकेजिंग और मार्केटिंग पर खास ध्यान दिया, जिससे न केवल बिहार बल्कि देश के अन्य हिस्सों में भी इसकी मांग बढ़ी।
फंडिंग और कोरोना काल की चुनौतियां
अक्टूबर 2019 में, सत्तूज़ को इंडियन एंजल नेटवर्क और अन्य निवेशकों से फंडिंग मिली। हालांकि कोरोना काल में बिजनेस को कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन बाद में स्थिति सामान्य हो गई। 2021 में, सत्तूज़ ने शेकर्स भी लॉन्च किए, जो चलते-फिरते हेल्थ ड्रिंक हैं।
पैकेजिंग का महत्व और दुबई से मिला रिस्पांस
सत्तू की पैकेजिंग के लिए बिहार में अच्छे विकल्प नहीं थे, इसलिए उन्हें बाहर के राज्यों का रुख करना पड़ा। दुबई भेजे गए सत्तू के लिए पॉजिटिव रिस्पांस मिला, जिसने उन्हें काफी प्रोत्साहन दिया।
शार्क टैंक का समर्थन
शार्क टैंक के जजों ने भी सचिन के बिजनेस आइडिया का समर्थन किया। भले ही फंडिंग मिली या नहीं, लेकिन जजों की सलाह और सहयोग ने उन्हें आत्मविश्वास से भर दिया। अब, सचिन अपने प्रोडक्ट को बड़े पैमाने पर ले जाने के लिए तैयार हैं।
इस प्रकार, सचिन कुमार की कहानी एक प्रेरणा है कि किस तरह सही योजना और मेहनत से आप अपने सपनों को साकार कर सकते हैं।
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