सुभाशीष चक्रवर्ती की कहानी किसी चमत्कार से कम नहीं है। 1990 में सिर्फ 20,000 रुपये के छोटे से निवेश से शुरू की गई उनकी कंपनी DTDC, आज 2,000 करोड़ रुपये का साम्राज्य बन चुकी है।
सुभाशीष के इस सफर में उनके संघर्ष, मेहनत और नवाचार का एक अद्वितीय उदाहरण देखने को मिलता है। इस सफलता के पीछे उनकी मां के गहनों की कुर्बानी और कठिनाइयों का सामना करने का जज्बा छुपा हुआ है।
शुरुआती जीवन और नौकरी की शुरुआत
कोलकाता के एक साधारण मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे Subhasish Chakraborty ने रामकृष्ण मिशन रेजिडेंशियल कॉलेज से केमिस्ट्री की पढ़ाई की। अपनी पढ़ाई के साथ ही उन्होंने पीयरलेस नामक एक बीमा कंपनी में काम करना शुरू कर दिया था। 1981 में, उन्हें व्यवसाय विस्तार के लिए बेंगलुरु भेजा गया, जहां से उनके जीवन का एक नया अध्याय शुरू हुआ।
ये भी पढ़े :Success Story: MBA छोड़कर शुरू किया हींग का कारोबार, आज खुद बने मालिक, दूसरों को दे रहे रोजगार
पहला उद्यम और असफलता का सामना
सुभाशीष ने 1987 में Peerless को छोड़कर अपना खुद का केमिकल डिस्ट्रीब्यूशन व्यवसाय शुरू किया, लेकिन डाक सेवाओं की खामियों के कारण उनका यह प्रयास असफल रहा। इस असफलता ने उन्हें एक नए अवसर का एहसास कराया। उन्हें समझ आया कि डाक सेवाओं और ग्राहकों की जरूरतों के बीच एक बड़ा अंतर है, जिसे पाटने की जरूरत है।
DTDC की शुरुआत और संघर्ष का दौर
सुभाशीष ने 26 जुलाई 1990 को अपनी कूरियर कंपनी DTDC की शुरुआत की। DTDC का मतलब ‘डेस्क टू डेस्क कूरियर एंड कार्गो’ है। हालांकि, शुरुआत में उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। बैंक से लोन न मिलने के कारण, उन्हें अपनी मां के गहने बेचने पड़े। उन्होंने अपनी कंपनी में सिर्फ 20,000 रुपये का निवेश किया था, लेकिन उनका सपना बड़ा था।
फ्रैंचाइजी मॉडल: सफलता की कुंजी
साल 1991 में सुभाशीष को फ्रैंचाइजी मॉडल का विचार आया, जिसने DTDC को सफलता की नई राह दिखाई। इस मॉडल के तहत उन्होंने छोटे शहरों में भी अपनी सेवाएं शुरू कीं, जहां कूरियर सेवाओं की मांग अधिक थी। छोटे शहरों में सेवाएं शुरू करना उनके लिए फायदेमंद साबित हुआ, और धीरे-धीरे DTDC एक बड़ा नाम बन गया।
DTDC का विस्तार और वैश्विक उपस्थिति
DTDC के पास आज 14,000 पिन कोड पर सेवाएं देने का नेटवर्क है और यह भारत के 220 से अधिक स्थलों पर सेवाएं प्रदान करती है। 2006 तक, कंपनी के पास 3,700 फ्रैंचाइजी और 125 करोड़ रुपये की कमाई हो चुकी थी। रिलायंस कैपिटल के निवेश से कंपनी और भी तेजी से बढ़ी, और 2010 तक इसकी बिक्री 450 करोड़ रुपये तक पहुंच गई।
ई-कॉमर्स में कदम और नए अध्याय की शुरुआत
2013 में, DTDC ने निक्कोस लॉजिस्टिक्स में 70% हिस्सेदारी हासिल कर ली और भारत का पहला ई-कॉमर्स डिलीवरी नेटवर्क DotZot की स्थापना की। यह DTDC के लिए एक नया और महत्वपूर्ण कदम था, जिसने उसे डिजिटल युग के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने का मौका दिया।
ये भी पढ़े :Success Story: बड़ी कंपनी छोड़ी, शौक को बनाया बिजनेस: ज़ोरीन कबानी की प्रेरणादायक कहानी
सफलता का मूलमंत्र: दृढ़ इच्छाशक्ति और मेहनत
सुभाशीष चक्रवर्ती की कहानी से यह सिद्ध होता है कि यदि दृढ़ इच्छाशक्ति हो और मेहनत का जज्बा हो, तो कोई भी लक्ष्य हासिल किया जा सकता है। उनकी यात्रा संघर्ष से सफलता तक का एक प्रेरणादायक सफर है, जो हर उस व्यक्ति के लिए एक सीख है जो अपने सपनों को सच करना चाहता है।
DTDC की सफलता में नवाचार की भूमिका
सुभाशीष चक्रवर्ती के लिए नवाचार और नए विचारों को अपनाना सफलता की कुंजी रहा है। DTDC ने न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी पहचान बनाई है। कंपनी ने समय-समय पर अपने व्यवसाय मॉडल में बदलाव किए और नए तकनीकी उपायों को अपनाया, जिससे वह अपने प्रतिस्पर्धियों से आगे निकल पाई।